श्री भिखारी प्रजापति: सेवा, समर्पण और संगठन के प्रतीक

श्री भिखारी प्रजापति जी का जन्म 25 जनवरी 1956 को ढेकुनाध, बेलघाट में हुआ। उनका पूरा जीवन संघर्ष, सेवा, और सामाजिक उत्थान का एक प्रेरणादायक उदाहरण है। वे केवल अपने व्यक्तिगत विकास तक सीमित नहीं रहे, बल्कि समाज को नई दिशा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

शिक्षा और प्रारंभिक जीवन
संघर्षों के बीच पले-बढ़े श्री भिखारी प्रजापति जी ने शिक्षा को अपने जीवन का आधार बनाया। भारती इंटरमीडिएट कॉलेज से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद, उन्होंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी व गोरखपुर विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण की।
उन्होंने वाराणसी में आयोजित प्रदेश स्तरीय वाद-विवाद प्रतियोगिता में पहला स्थान तथा गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार में आयोजित अखिल भारतीय भाषण प्रतियोगिता में भी पहला स्थान प्राप्त किए हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के प्रकाशन मंत्री तथा बेलघाट क्षेत्र से जिला पंचायत के सदस्य रहे हैं।

कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने शिक्षा के प्रति अपने समर्पण को बनाए रखा और यह संदेश दिया कि सच्ची लगन से हर लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

उनकी जीवन यात्रा कई चुनौतियों से भरी रही। परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए उन्होंने ईंट भट्ठे पर मजदूरी की, लेकिन शिक्षा और आत्मनिर्भरता की लौ को बुझने नहीं दिया। उन्होंने अपने परिवार और समाज को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया और हर संभव प्रयास किया कि कोई भी व्यक्ति ज्ञान से वंचित न रहे।

सामाजिक योगदान और विचारधारा
श्री भिखारी प्रजापति जी समाज सेवा को अपना परम कर्तव्य मानते हैं। वे शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ मानते हैं और शिक्षकों को भाग्य विधाता समझते हैं। समाज के कल्याण के लिए वे लगातार प्रयासरत रहे हैं। वे मानते हैं कि समाज में समानता और समरसता लाने के लिए शिक्षा, सेवा, और संस्कारों की अनिवार्यता है।

विश्व हिंदू महासंघ में योगदान
वे केवल समाजसेवा तक सीमित नहीं रहे, बल्कि संगठनात्मक कार्यों में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई। वे विश्व हिंदू महासंघ उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं और संगठन के विस्तार एवं हिंदू समाज को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

उनका सरल और विनम्र स्वभाव ही उन्हें सबसे अलग बनाता है। वे पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के साथ समानता का व्यवहार करते हैं और जमीन पर बैठकर सहभोज करने की परंपरा को बढ़ावा देते हैं। उनके नेतृत्व में समाज में छुआछूत, ऊंच-नीच जैसी कुरीतियों को मिटाने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं।

राजनीतिक और सामाजिक सक्रियता
उनकी विचारधारा राजनीति से परे रहकर समाज के वास्तविक मुद्दों पर केंद्रित रहती है। वे जनता की आवश्यकताओं—सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, और शिक्षा—को सर्वोच्च प्राथमिकता देने में विश्वास रखते हैं। उनकी सोच हमेशा यह रही है कि विकास को राजनीति से ऊपर रखा जाए और समाज की भलाई के लिए कार्य किया जाए।

श्री भिखारी प्रजापति जी का जीवन एक सेवक के रूप में संगठन में समर्पित रहा है। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी समाज को एकजुट करने का कार्य किया।

अस्वस्थता के बावजूद, उन्होंने कभी भी अपने कर्तव्यों से समझौता नहीं किया। उनके नेतृत्व में विश्व हिंदू महासंघ के बैनर तले प्रदेशभर में सामाजिक समरसता सहभोज, संत शिरोमणि रविदास जयंती, और अन्य धार्मिक-सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता रहा है।

 

 

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