गांव के बगीचे में प्रकृति की संरक्षण के साथ-साथ शुद्ध वातावरण भी मिलता था लोगों को। प्राकृतिक के द्वारा निर्धारित समय चक्र को भी ज्ञात करता था यह बगीचा, कोयल की बोली सावन महीने का झूला कजरी गीत, गांव के बागीचे में मनमोहित कर लेती थी बगीयो की ये हरियाली।
बुला रहा है तेरा गांव
बुला रहा है तेरा गाँव
लौट जा तू उल्टे पाँव
शहर के भोग विलास से
तो भली वहाँ की धूपछाँव से
मिला है तुझको जीवन एक
खेल रहा है दाँव पे दाँव
चैन की रोटी खानी होतो
लौट जा तू उल्टे पाँव
छोड़ कोयल की मीठी तान
सुने है कौवे की काँव काँव
उधर मधुर सी मिठास लिए
बुला रहा है तेरा गाँव
शहर तो है एक रैनबसेरा
गाँव है तेरी असली ठाँव
तोड़ निन्यानवे का ये फेरा
लौट जा तू उल्टे पाँव
बुला रहा है तेरा गाँव
आज गर्मी अपने सारे रिकॉर्ड को तोड़ते हुए छाया रूपी वृक्ष को भी जला रही है। मनुष्य प्राणी अपने जीवन की ऐसी ऊंचाइयों पर पहुंचाना चाहता है जहां उसे सारी सुख सुविधा मिल सके। वह भली बात जान रहा है। अप्राकृतिक जीवन कितना खतरनाक है। लेकिन फिर भी दुनिया की बनावटी चीजों में प्राकृतिक की व्यवस्थाओं को नष्ट करते हुए अपने आप को विकास की गति देने में प्रकृति की व्यवस्थाओं को नष्ट कर डाल रहा है। सरकार के द्वारा अभियान के तहत पेड़ लगाओ अभियान चलाया जा रहा है। यह अभियान धरातल पर सफल कारगर दिखाई भी नहीं दे रहा है।
आसमान से बरसता हुआ आग ⏩🔥🔥🌅🌅🌅
विकसित भारत की भूमि हो रही बंजारा हे भगवान क्या होगा अब आगे
कविता के माध्यम से एक संदेश, 👉
बन्जर होती जमीन सुखती फसले
आग उगलता आशमा पानी को
तरसती आखे
किसान की खुदखुशी पर
फट रहा सिना धरती का
लहु लुहान है मन्जर सारा
ढेर लगा है लासो का रोरा
आखे खाली हो गयी आस लगाते
उम्र हो गयी जिन्दगी तो अब बोझ
हो गयी रोटी खाये कयी दिन कयी
रात हो गयी देख रहे सब लाचारी
हमारी भुख हो गयी दुशमन हमारी
गरीबी निगल गयी खुशियाँ सारी
तमासा हो गयी इज्जत हमारी
लगाते है फरियाद जब जाकर सुनती
है सरकार हमारी
Regards,
Anup Singh